प्रसाद बुद्धि - परिचय श्रीमद् भगवद्गीता अध्याय तीसरा प्रसाद बुद्धि - परिचय श्रीमद् भगवद्गीता अध्याय तीसरा

प्रसाद बुद्धि - परिचय श्रीमद् भगवद्गीता अध्याय तीसर‪ा‬

अच्छा करो क्योंकि अच्छा करना अच्छा होता है

Publisher Description

भगवद गीता का दूसरा अध्याय ब्रह्मज्ञान और ब्रह्मज्ञान को प्राप्त करने की विधि देता है। श्रीकृष्ण दूसरे अध्याय समापन आत्म-साक्षात्कारी या स्थितप्रज्ञ लोगों की विशेषताओं से करते है।

लेकिन यह देखते हुए कि श्रीकृष्ण ने आत्म-साक्षात्कारी या स्थितप्रज्ञ होने पर जोर दिया है, अर्जुन सोचते हैं कि यदि स्थितप्रज्ञ होना महत्वपूर्ण है तो हम कर्म करने में अपना समय क्यों बर्बाद करें।

लेकिन, स्थितप्रज्ञ होना और कर्म करना परस्पर अनन्य चीजें नहीं हैं। स्थितप्रज्ञता की प्राप्ति की ओर पहला कदम हमारे मन की शुद्धि है, और वह शुद्धि केवल कर्म योग द्वारा अपने कर्म करके ही प्राप्त की जा सकती है।

भगवद गीता का तीसरा अध्याय अर्जुन के कर्म के प्रति प्रश्न से शुरू होता है और फिर श्रीकृष्ण बताते हैं कि कैसे कर्म योग हमारे मन को शुद्ध करता है और हमें आत्म-साक्षात्कार के मार्ग पर ले जाता है।

इस अध्याय में, श्रीकृष्ण हमें कर्म योग का पालन करने के विभिन्न तरीकों को समझने में हमारी मदद करते हैं, और फिर आत्म-साक्षात्कार के मार्ग पर सबसे बड़े दुश्मन, यानी हमारी इच्छाओं और वासनाओं को ख़त्म के लिए भी काफी सारे सुझाव देते हैं।

GENRE
Religion & Spirituality
RELEASED
2022
August 9
LANGUAGE
HI
Hindi
LENGTH
106
Pages
PUBLISHER
राजश्री देशमुख
SELLER
Raghunath Deshmukh
SIZE
15.6
MB