संग्राम संग्राम

संग्रा‪म‬

एक सामाजिक नाटक

Publisher Description

संग्राम प्रेमचंद द्वारा लिखित नाटक है। प्रेमचन्द मूलतः कथाकार थे, लेकिन उन्होंने कुछ नाटक भी लिखे हैं, जैसे कर्बला, प्रेम की वेदी। संग्राम नाटक में प्रेमचंद ने पहली बार और शायद आखरी बार गीतात्मक शैली का इस्तेमाल किया है। इस शैली का ज्यादा इस्तेमाल जयशंकर प्रसाद अपने नाटकों में करते हैं चूँकि वे कवि भी थे। प्रेमचंद ने प्रयोग के तौर पर इस शैली का इस्तेमाल किया है और अपनी भूमिका में आखरी प्रयोग के रूप में स्वीकार किया है। नाटक की मूल भूमि सामंती परिवेश और हमारा समाज है। जहाँ सामंतों की जाद्दती और मजदूर-किसान की लाचारी है। नाटक में प्रेम की नाटकीयता भी दिखाई गई है और यहीं नाटकीयता पूरे नाटक को एक मुकाम तक पहुँचता है। इस प्रेम में मन की शुद्धता नहीं, यह कुंठित व्यविचार है, जो आचरण के छल से पैदा होता है। प्रेमचंद ने अपनी पूरी कथा-यात्रा में स्त्री-चरित्र को सशक्त और धर्म-रक्षक बनाया है। इस नाटक की नायिका भी बड़ी सावधानी से अपने धर्म की लाज रखती है। इस नाटक में सामंती समाज का एक सकारात्मक चेहरा भी उजागर किया गया है। नाटक में नायक और नायिका दोनों अधर्म और कुरीति के मार्ग पर उतरते हैं लेकिन लेखक ने बड़ी सफाई ने दोनों को बचाया है। दोनों का धर्म बचा रहता है। मजदूर चेतना, किसान चेतना का सचेत अंकन किया गया है। २० वीं शताब्दी के तीसरे-चौथे दशक के समाज की यथार्थ परक झांकी इस नाटक के माध्यम से प्रस्तुत की गई है।

GENRE
Arts & Entertainment
RELEASED
2016
13 December
LANGUAGE
HI
Hindi
LENGTH
211
Pages
PUBLISHER
Public Domain
SIZE
1.2
MB

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