कमलाकांत का पोथा
Publisher Description
कमलाकांत का पोथा बंकिमचन्द्र चटर्जी द्वारा लिखित पुस्तक है। पुस्तक की प्रकृति पूर्णत: दार्शनिक है। दर्शन की भूमी भी कुछ उर्वरक नहीं। एक खास ढंग की वायवीयता है जो कि दर्शन की गुरुता को और उलझाती हुई चलती है। बहुत सचेत ढंग से पढ़ने पर पता चलता है कि लेखक अपना ही नाम बदलकर इस वाग्जाल को बुनता है। इस पुस्तक का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष लेखक का प्रकृति अनुराग है। प्रकृति और वनस्पति को जीवन के साथ जोड़ कर उसकी सार्थकता को उजागर किया है। दूसरी महत्वपूर्ण बात लेखक की वर्णन शैली है। जैसे नारियल का निर्माण और विकास, इस वर्णन में लेखक ने जिस रोचकता का सहारा लिया है वह काबिले गौर है। वैसे ही फूलों, भौरों और परागों की उत्पत्ति, निर्माण और विकास भी काफी दिलचस्प ढंग से वर्णित किया गया है। एक तरफ वर्णन से पाठक ज्ञान लाभ करते हैं वहीँ दूसरी तरफ हल्के-हल्के व्यंग का आभास भी होता है। जैसे बात-बात में ब्रह्म समाज का मजाक, या ऐसे ही दूसरे बंगाली व्यवहार-आचरण की निंदा की गई है जो समय के साथ रूढ़ होती गई थीं। सामाजिक आचरणों की निंदा करते हुये भी कमलाकांत नास्तिक नहीं है वह बार-बार कहता है की ‘ईश्वर की प्रीति ही मेरे लिये संगीत-संसार है।’ समाज में कई ऐसे चरित्र होते हैं जो समाज की बारीकियों को बखूबी समझते हैं लेकिन समाज उन्हें नहीं समझता। बंकिम बाबू का कमलाकांत ऐसा ही चरित्र है। समाज उसे धिक्कारता है और वह उस पर ठठा कर हँसता है।