चंद्रकांता संतति
भाग ७
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चंद्रकांता संतति भाग ७ देवकीनंदन खत्री का लोकप्रिय उपन्यास है। जिस प्रकार कहानी के पात्र और घटनाएँ एक दूसरे से जुड़ी हुई है इसी प्रकार राजवाड़े भी एक-दूसरे से जुड़े हुये हैं। इसलिये कथा चुनारगढ़ से गयाजी, गयाजी से रोहतासगढ़, और रोहतासगढ़ से काशी का चक्कर लगाती है। पाठक पीछे के भाग में ही काशी घूम आये हैं। वह मायावी स्त्री, जो दो बार राजा वीरेंद्र सिंह और साथियों को बचा चुकी है उसका वास्तविक नाम कमलिनी है। एक तरह से वह राजा वीरेंद्र सिंह के खेमे की पक्षधर है। उसकी तथा दूसरे लोगों की कहानी शुरू होती है, जिसका गहरा सम्बन्ध तिलिस्मी भवन से है। ताज्जुब नहीं कि प्रत्येक भाग में कहानी एक नयी राह लेती है लेकिन अभी तक किसी खास मुकाम पर नहीं पहुँची। कई बार झंझटों से छूटते-छूटते किसी नये झंझट में कहानी चली जाती है। पाठक थोड़े निराश होते हैं, लेकिन लेखक ने इतनी रोचकता भरी है कि कहानी कहीं थकाती नहीं। पाठक एक के बाद दूसरे भाग में बहुत सहजता से प्रवेश कर जाते हैं। तेज सिंह उस खंडहर से निकलने के बाद जुगाड़ से उस तिलिस्मी भवन में प्रवेश कर जाते हैं और गिरफ्तार कर लिये जाते हैं। वहाँ उनकी मुलाकात एक नये पात्र नानक से होती है, जिसका परिचय पाठक पहले पा चुके हैं लेकिन यहाँ वह जिस तरह अपनी पुरानी बाते उजागर करता है, जिससे पाठक कई भेद (राज) से परिचित होंगे। इसीके साथ हम अगले भाग में प्रवेश करते हैं।