चंद्रकांता संतति
भाग १४
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चंद्रकांता संतति भाग १४ देवकीनंदन खत्री का लोकप्रिय उपन्यास है। कहानी के पीछे कहानी, फिर कहानी के पीछे कहानी का जाल बनता है। जब पाठकों को यह एहसास होता है कि मुसीबतों का जाल अब टूटना ही चाहता है तब तक उसी जाल से एक धागा निकल कर दूसरा जाल तैयार करने लगता है। इस तरह कहानी बनती और बढ़ती रहती है। जमानिया राज्य के तिलिस्म के पीछे भारी घाल-मेल पहले ही किया जा चुका है। जिसपर से धीरे-धीरे पर्दा उठ रहा है। उसी की एक कड़ी वह युवती है जो कि तिलिस्म के भीतर तीनों कुमारों को मिली है। उसका नाम इन्दिरा है और जो कि इन्द्रदेव की बेटी है। यह तीनों राजकुमारों से मिलकर अपना पीछे का पूरा हाल कहती है, जो कि बहुत लम्बा है। इसमें थोड़ा-थोड़ा सहयोग गोपाल सिंह भी करते हैं चूँकि इन्द्रदेव उनके अच्छे मित्र है। उधर रोहतासगढ़ के किले में जहाँ सभी अचानक के हमले से घिर गये थे। इन्द्रदेव के एक ऐयार, भूतनाथ और कृष्णा जिन्न की बदौलत सकुशल बच जाते हैं। फिर सब की राय से कमलिनी, लाड़ली, लक्ष्मी देवी और उनके नकली बाप को लेकर इन्द्रदेव अपने ठिकाने की ओर निकलते हैं तथा किशोरी कामिनी, कमला राजा वीरेंद्र सिंह, तेजसिंह के साथ चुनार के लिये प्रस्थान करते हैं। इसी बीच राजा वीरेंद्र सिंह के लश्कर में मनोरमा लौंडी का भेष बदल कर घुस जाती है और किशोरी कामिनी को मारने का उद्योग करती है। उधर इन्दिरा की कहानी से पिछले कई राज खुलते हैं जो कि दारोगा ने रचे हैं। कहानी अगले भाग में प्रवेश करती है।