चंद्रकांता संतति
भाग २०
Publisher Description
चंद्रकांता संतति भाग २० देवकीनंदन खत्री का बहुपठित एवं चर्चित उपन्यास है। अभी तक हमने पढ़ा कि कहानी घूम-घुमाकर चुनार पहुँच चुकी है। कहानी की नायिकाएँ और सह-नायिकाएँ भी सकुशल चुनार पहुँच चुकी है। महाराजा सुरेन्द्र सिंह और उनके खास ऐयार जीतसिंह जो कि अब तक कहानी की मुख्यधारा में नहीं थे अब मुख्यधारा में आते हैं। चुनार में हो रहे सारे फैसले और सारी गतिविधियाँ इन्हीं के आदेश से होकर गुजरती है। इन दोनों के राय-परामर्श के बाद दोनों कुमारों की शादी का इंतजाम कार्य प्रारंभ होता है। चुनार का वह तिलस्मी भवन एक तरह से विवाह-महोत्सव की तैयारी में बदल गया है। दूसरी तरफ, भूतनाथ के रहस्य का पर्दा अभी पूरी तरह उठा नहीं है। अत: कई राज जो अभी तक दबे हैं एक-एक कर खुलते हैं। मसलन भूतनाथ की दो शादी हुई थी तथा पीछे के उसके कर्म-कुकर्म भी धीरे-धीरे खुलते हैं। लेखक ने जहाँ नाटक शैली का प्रयोग बखुबी किया है वहीँ कथावाचन शैली का इस्तेमाल भी करते हैं। वाचन शैली में ही कई घटनाओं पर से पर्दा उठता है। भूतनाथ की कहानी का वाचक भी कोई दूसरा-तीसरा आदमी है। इस तिलिस्मी कहानी में एक और बात महत्वपूर्ण है। कि जहाँ तिलिस्म के भेद एक-दूसरे से जुड़े हुये हैं वहीँ राज्य भी तिलिस्म के माध्यम से जुड़े हुये हैं। अब पता चलता है की कहानी चुनार से गया, रोहतासगढ़ होते हुये जमानिया और फिर चुनार क्यों घुमती है। चूँकि सभी के तिलिस्म एक-दूसरे से जुड़े हुये हैं और काशी पूरी घटनाओं को छुपाने का अड्डा बनाया गया है।