Darinde
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Publisher Description
कितनी भी कड़वी और अनचाही लगे यह बात, मगर है सच। जीवन के अनेक क्षेत्र और पक्ष हैं जहाँ पग-पग पर जिनसे सम्पर्क पड़ता है उनके व्यवहार का भाव और अर्थ मानवों-जैसा तो नहीं ही होता। कुछ वर्ग तो जैसे बिलकुल उसी साँचे के ढले बने हैं, भले ही यों शिष्ट और प्रिय-दर्शन हैं, सम्भ्रान्त और परदुख कातर हैं। और तो और, अपने पारिवारिक और निजी जीवन तक में कहीं न कहीं मानव का वह मूल आदिम रूप बना चला आता है। कैसा अजीब लगता है आज के युग में यह सब! पर आज के युग में ही तो यह सब और भी उभर सका, निखर सका!! हमीदुल्ला के इन नाटकों में इन्हीं तथ्यों का उद्घाटन किया गया है