मानसरोवर
भाग ४
Publisher Description
मानसरोवर भाग-४ प्रेमचंद की कहानियों का संग्रह है। इस संग्रह के तहत कस्बाई भाव-बोध की कहानियाँ ज्यादा है। जैसे ग्रामीण समाज में जमींदार, कार्कुन किसानों का शोषण करते थे, वैसे ही कस्बों और शहरों में सेठ, वकील, दारोगा शहरी जनता का शोषण करते थे। ‘मृतक-भोज’ शीर्षक कहानी जातीय रक्षा की आड़ में जातीय निकृष्ठता की प्रतिनिधि कहानी है। वैसे ही ‘सवा सेर गेहूँ’ शीर्षक कहानी बधुवा मजदूर बनाने की दास्ता बया करता है। ‘दो सखियाँ’ कहानी में शिक्षित युवतियों के स्वभाविक द्वंद्व को उजागर किया गया है। स्वभाव की पड़ताल और संवादों द्वारा घटना को व्यवस्थित क्रम देना प्रेमचंद की कहानी कला को उच्चता प्रदान करता है। प्रेमचंद की दृष्टि जितनी सघन है उतनी ही विरल भी। घटना, परिवेश, पात्र और भाषा संतुलन ही प्रत्येक कहानी में प्राण भरते हैं। प्रेमचंद ने कहानियों के माध्यम से सिर्फ शोषण, अत्याचार और अपमान को ही उद्घाटित नहीं किया अपितु सौन्दर्य, श्रृंगार के लिये भी गुंजाइश बनाई। लेकिन प्रेमचंद का सौन्दर्य जितना गरीब की झोपड़ी में खिलता है उतना अमीर की हवेली में नहीं। अनपढ़, मजदूरनी प्रेमचंद के यहाँ ज्यादा श्रृंगारवान है तुलनात्मक रूप से सुशिक्षित या अमीर घर की महिलाओं के। जितनी महीन पड़ताल, अपने समाज की प्रेमचंद ने की है, उतनी किसी और कथाकार ने नहीं की, यह एक तरह से सम्पूर्ण हिन्दी साहित्य और समाज को उनका ऋण है।