Jo Paida Hua Wo Fani Hai
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Descrizione dell’editore
सर्दी भरी रात में लिखना शैलेंद्रजी का मनपसंद समय है। आसपास कोई शोर नहीं होता। और वह लिखते चले जाते हैं। शोर तो दिन में भी नहीं होता, क्योंकि उनके घर में उनके अलावा कोई और नहीं, पर वक्त बेवक्त बाहर की गाड़ियों का आता शोर और कभी कोई पार्सल ही आ गया तो उन्हें लगता है कि डोर बेल उनके सर के ऊपर ही कहीं बजाई गई है और उनका ध्यान भंग हो जाता है। कहा जाता है रविंद्रनाथ टैगोर जब लिखते थे, तो लगातार दो-दो दिन तक लिखते थे। उनका खाना भी गेट के नीचे से अंदर सरका दिया जाता था। शैलेंद्र जी दो दो दिन तक तो नहीं लिखते, लेकिन जब भी लिखते हैं तो उन्हें कोई व्यवधान पसंद नहीं आता।