क्या करें
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शब्द तो जैसे नाव की तरह होते हैं। अपना प्रवाह बना लेना उनका स्वभाव है। मगर, नाव को पानी तो मिले! कोई चलाये तब तो चलें। कहानियां भी शब्दों का प्रवाह नहीं है। उन्हें भी पानी का बहाव चाहिए होता है। भावनाओं का प्रवाह तो सबसे बुलंद और सतत् बहाव है। यह जो नाव चल पड़ना चाहती है, उसको पानी का प्रवाह जिस ‘ईश-तत्व’ ने दिया है, उसे दुआएं दीजियेगा, गर कहानी पसंद आये । ना आये तो और भी...