Bikhare Moti Bikhare Moti

Bikhare Moti

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Publisher Description

मैं ये ‘बिखरे मोती’ आज पाठकों के सामने उपस्थित करती हूँ; ये सब एक ही सीप से नहीं निकले हैं। रूढ़ियों और सामाजिक बन्धनों की शिलाओं पर अनेक निरपराध आत्माएँ प्रतिदिन ही चूर-चूर हो रही हैं। उनके हृदय-बिन्दु जहाँ-तहाँ मोतियों के समान बिखरे पड़े हैं। मैंने तो उन्हें केवल बटोरने का ही प्रयत्न किया है। मेरे इस प्रयत्न में कला का लोभ है और अन्याय के प्रति क्षोभ भी। सभी मानवों के हृदय एक-से हैं वे पीड़ा से दुःखित, अत्याचार से रुष्ट और करुणा से द्रवित होते हैं। दुख, रोष और करुणा, किसके हृदय में नहीं है ? इसीलिए ये कहानियाँ मेरी न होने पर भी मेरी हैं, आपकी न होने पर भी आपकी और किसी विशेष की न होने पर भी सबकी हैं। समाज और गृहस्थी के भीतर जो घात-प्रतिघात निरंतर होते रहते हैं उनकी यह प्रतिध्वनियाँ मात्र हैं; उन्हें आप ने सुना होगा। मैंने कोई नई बात नहीं लिखी है; केवल उन प्रतिध्वनियों को अपने भावुक-हृदय की तन्त्री के साथ मिलाकर ताल स्वर में बैठाने का ही प्रयत्न किया है।

GENRE
Sci-Fi & Fantasy
RELEASED
2010
10 February
LANGUAGE
HI
Hindi
LENGTH
96
Pages
PUBLISHER
Bhartiya Sahitya Inc.
SIZE
620.5
KB