Aakhir Kya Hai Satya
आखिर क्या है सत्य? भाग -1
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Descripción editorial
सत्य की खोज की प्रारंभिक शर्त तो यही हो सकती है कि व्यक्ति मौलिक और स्वतंत्र हो। जब व्यक्ति इस सोपान पर होता है तो निश्चित रूप से उसे अहंकारशून्यता की स्थिति में होना होता है। एक ऐसी स्थिति जिसमें असत् के अस्तित्व के लिए भी नकार नहीं हो। इससे व्यक्ति में सत्य के प्रति सच्ची जिज्ञासा उत्पन्न होती है। जिसकी अभिव्यक्ति ही वह कला के किसी माध्यम से करता है। तब सही अर्थों में वह नए सिरे से जीवन से परिचित होता है। दुनिया बिलकुल नई होती है। जिसमें जीवन को घेरी भौतिकता की विडंबनाओं के मध्य भी सत्य को जानने की गहन जिज्ञासा होती है। व्यक्ति सृष्टि के उद्भव के मूल में जाने का प्रयास करता है, वस्तुतः अपने अस्तित्व की खोज प्रारंभ करता है। शनैः शनैः वह प्रत्येक सृजन से परिचित होता है। इस प्रक्रिया में यह बोध होता है कि सृष्टि सचमुच प्रेम और करुणा पर अवलंबित है।