Saapharee Saapharee

Saapharee

Descripción editorial

जब भगीरथ प्रयत्नों से उसे आकाश से उतरना पड़ा था और जब महायोगी शिव उसे अपनी जटाओं में बाँधने के लिए हो गए थे तैय्यार; तब आक्रोश भरी गंगा ने फूँफकारा था:

वह मुझे बांधेगा?
मेरी बाढ़ उसे बहा ले जाएगी।
मेरा उफनता ज्वार
उसे भँवरों में देगा डुबा
अनंत नरक की गहराइयों में…

पर शिव तो शिव हैं। यहाँ आसन्न मृत्यु का इंतज़ार करता मैं भी उन्हें याद करके, एक नए उत्साह से भर उठा। पर्वत सम्राट शिव ने मुझे निडर कर दिया।

हे शिव, मुझे आलोकित करो
इस उफानती नदी को नाचने दो,
मेरे भी सिर पर।
तुम्हारी कृश और उलझी जटाएँ,
ज़हरीले नाग मुझे ग्रस लें।
भूत, प्रेतों से घिरा मैं
श्म्शान की राख में लिपटा होकर भी-
मैं यहीं बैठा रहूँगा
साधनारत श्म्शान में चिताओं के मध्य,
एक योगी की तरह।
हे शिव,
मुझे मुक्त करो
मैं नहीं चाहता पुनर्जन्म
परंतु, ले जाओ मुझे
सार्थकता के शिखर पर।
अहों प्रभु,
बने तुम्हारा पथ ही मेरा भी मार्ग।

GÉNERO
Ficción y literatura
PUBLICADO
2017
11 de octubre
IDIOMA
HI
Hindi
EXTENSIÓN
1
Página
EDITORIAL
Yugal Joshi
VENTAS
Draft2Digital, LLC
TAMAÑO
3.3
KB

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