



श्रीरामतीर्थ ग्रंथावली
भाग ३
Publisher Description
स्वामी रामतीर्थ भाग-३ स्वामी रामतीर्थ के विचारों का संकलन है। इस भाग के शुरूआती अध्यायों में रामतीर्थ के प्रारंभिक जीवन बाल्यावस्था, किशोरावस्था तथा शिक्षा-दीक्षा की जानकारी मिलती है। इस भाग में ही पता चलता है कि बालक राम शुरू से ही ऋषि प्रवृति के बालक थे। अध्यात्म के प्रति, सनातन और वैदिक परंपरा के प्रति उनका रुझान प्रारंभ से ही बना रहा। इस पुस्तक में ऐसे अध्याय भी है जो कि प्रश्न-उत्तर शैली में है। जैसे जीवन और अध्यातम सम्बन्धी जानकारी के लिये किसी जिज्ञाशु ने समाचार-पत्र में प्रश्न छपवा दिये और जानकर ने उसके उत्तर फिर समाचार-पत्र के माध्यम से ही छपवा कर दे दिया। ज्यादातर साहित्य भाषण ही है, जो कि अलग-अलग स्थानों पर दिया गया है। इस भाग में इनकी शैली वर्णात्मक है। रामतीर्थ की शिक्षा में मन की साधना और सात्विकता पर बहुत जोर है। इसलिये वे कहते हैं ‘जब तक मन पवित्र नहीं होगा, ज्ञान का रंग कदापि नहीं चढ़ सकता।’ सात्विक-साधना के हिमायती रामतीर्थ प्राय: ऐसी संगत से बचने की सलाह देते हैं, जहाँ पहुँचने से हृदय में राग-द्वेष पैदा हो। सात्विकता के लिहाज से ही स्वामी राम का मानना है कि ‘विजय उस मनुष्य की कभी नहीं हो सकती जिसका मिजाज शुद्ध नहीं है।’ इस तरह इस पुस्तक के माध्यम से वेदान्त की शिक्षा को जीवन-जगत के संदर्भ में उतारने की कोशिश की गई है।