यह जिहाद नहीं: कथित इस्लामी आतंकवाद की पृष्ठभूमि निदान और समाधान (Hindi)
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Descripción editorial
कथित इस्लामी आतंकवाद के वैज्ञानिक (वैचारिक) खंडन-समाधान पर आधारित एकमात्र पुस्तक
(नब्बे हजार शब्द)
कहते हैं कि एक राक्षस था जिसका प्राण उसके जिस्म में न होकर एक तोते में रहता था। इस वजह से उसके जिस्म को बार बारबार नष्ट करने के बावजूद भी वह राक्षस फिर से ज़िंदा हो जाता था। ठीक इसी प्रकार से मौजूदा वक़्त की सबसे बड़ी वैश्विक समस्याओं में से एक आतंकवाद का प्राण भी उसके सरदारों या संगठनों में न होकर उसके विचारों में मौजूद है। इस वजह से आतंकी संगठनों को नष्ट किए जाने के बावजूद भी वह पुनः सिर उठाने में कामियाब रहता है। ऐसे में आतंकी सिद्धांतों का तोड़ निकालना इस वक़्त की सबसे बड़ी आवश्यकता बन चुकी है; और आखिरकार लंबी प्रतीक्षा के बाद इस उद्देश्य से रचित विश्व की सर्वप्रथम पुस्तक आपके सामने आ चुकी है।
जी हाँ.....TV, अखबारों एवं इंटरनेट के माध्यम से हमें आतंकवाद से जुड़े समाचार रोज़ सुनने को मिलते हैं लेकिन इसका समाधान कहाँ से निकलेगा कोई नहीं जानता और एक मानसिक बीमारी का इलाज बम व गोला-बारूद से करने का प्रयास किया जाता है, यह जानते हुए कि यह असंभव है। चाहे हम दुनिया के किसी भी हिस्से में क्यों न रहते हों लेकिन आतंकवाद किसी न किसी रूप में हम पर ज़रूर असर ड़ालता है। प्रतक्ष रूप से नहीं तो परोक्ष रूप से हमारी मानसिकता इस से ज़रूर प्रभावित होती है और जिन प्रांतों में उसका क़हर टूटता है वहाँ के लोगों का हाल तो हम देख ही चुके हैं। विशेष रूप से जब इस्लाम के नाम पर जारी आतंकवाद की बात की जाती है तो मन में तरह तरह के सवाल पैदा होते हैं; जैसा कि क्या एक मज़हब आतंकवाद की तालीम दे सकता है? क्या आतंकवाद धीरे धीरे पूरी दुनिया में फैल जाएगा? इस तरह से मुस्लिम समुदाय के लोग भी शायद सोचते होंगे कि क्या जिहाद के रास्ते में मरने से हमें स्वर्ग-प्राप्ति होगी? क्या इस से इस्लाम की जीत होगी और दोबारा इस्लामी खिलाफ़त की स्थापना होगी जिस से मुसलमान दूसरे मजहबों पर गालिब आ जाएंगे? क्या जिहाद नहीं करने वाला या इसका समर्थन नहीं करने वाला मुसलमान, सच्चा मुसलमान नहीं होता?
बहरहाल ऐसे सैकड़ों Multidimensional प्रश्न एवं तत्व हैं जिनके स्थायी एवं निर्णायक समाधान की तलाश इस वैश्विक समस्या के निवारण के दृष्टिकोण से ज़रूरी है। एक गवेषक के रूप में मेरा मानना है कि कथित जिहाद का यह भूत किसी और से पूर्व वर्ग विशेष के मन-मस्तिष्क पर सवार है तथा उनकी धार्मिक संवेदनशीलता से जुड़े होने के कारण वे इस पर तन-मन-धन से न्योछावर होने पर तैयार हैं। दुनिया बेशक इसे आतंकवाद के नाम से जानती है लेकिन जिन की निगाहों में इस से बड़ा कोई पुण्य नहीं, इस बड़ा कोई धर्म नहीं तथा इस से बड़ा कोई करम नहीं, उन्हें हथियारों से किसी भी हालत में रोका नहीं जा सकता। उन्हें तो बस यह समझाने की ज़रूरत है कि जिस रास्ते के तुम राहगीर हो वह अंतहीन व अर्थहीन है। यह तो बस दिमाग का खेल और हेरफेर है और जो तुम समझते हो वास्तव में उसका कोई अस्तित्व ही नहीं है। लेकिन एक अर्थहीन-ख़याली वस्तु के पीछे तुम मरे ही जा रहे हो। तुम्हें आज तक जो कुछ कहा गया तुम बिना सोचे-समझे उसके पीछे लग गए। लेकिन कभी अपना दिमाग भी तो लगाओ—सारी बात ख़ुद-बखूद समझ में आ जाएगी कि जिहाद आख़िर किस चिड़िया का नाम है, खिलाफ़त आख़िर क्या चीज़ है इत्यादि......इत्यादि......। यह जान लोगे तो तुम अपने हाथों अपना नुकसान नहीं करोगे बल्के ख़ुद भी जियोगे और दूसरों को भी जीने दोगे।
प्रिय पाठकों, इस पुस्तक के माध्यम से लेखक ने उग्र-जिहादी मानसिकता का अंतिम व निर्णायक समाधान तलाश करने का हर संभव प्रयास किया है। लेकिन हो सकता है कि शायद ऐसी कोई सामग्री छूट गयी हो जिसका पुस्तक में होना ज़रूरी था। अतः इसे देखते हुए इस के संपादन को आगे के Improvement के लिए अभी भी Open रखा गया है तथा पाठकों से सुझावों की प्रतीक्षा किया जा रहा है। आप अपना सुझाव पुस्तक के प्रथम पृष्ठ में उल्लेख Mail Id भेज सकते हैं। आपका सुझाव एवं मार्गदर्शन हमारे लिए, आपके लिए, देश तथा मानवता के हित के लिए अत्यंत ज़रूरी है। तो आइए, एक आतंक-मुक्त संसार की परिकल्पना को साकार करने की दिशा में मिल कर क़दम बढ़ाते हैं। हो सकता है आपका एक छोटा सा सहयोग एक बेहतर कल की नींव ड़ालने में मददगार बने।