अनघ
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अनघ मैथिलीशरण गुप्त द्वारा लिखित लघु काव्य नाटक है। इस नाटक का मूल प्रतिपाद्य मघ नामक पात्र के माध्यम से गौतम बुद्ध की शिक्षा एवं सन्देश को स्थापित करना है। इसीलिये गुप्त जी ने इस पात्र को ‘भगवान बुद्ध का साधनावतार बताया है।’ मैथिलीशरण गुप्त आरंभिक खड़ी बोली हिन्दी के प्रवक्ता कवि थे। समाज में उच्च आदर्श की प्रतिष्ठा के लिये हिन्दू धर्म के मान्य देवी—देवताओं के साथ दूसरे प्रतिनिधि चरित्रों की गौरव-गाथा की रचना की है। गुप्त जी साहित्य के माध्यम से आदर्श की प्रतिष्ठा के हिमायती थे। अनघ के माध्यम से जहाँ गौतम बुद्ध की शिक्षा दया, करुणा, पाप से घृणा, पापी से नहीं, आदि सन्देश देते हैं वहीँ समाज के लिये मघ जैसे चरित्र की प्रतिष्ठा कर, समाज को उसके अनुसरण का भी सन्देश देते हैं। गुप्त जी का समय स्वाधीनता आन्दोलन का समय था। जहाँ समाज के भीतर प्रत्येक मोर्चे पर संघर्ष हो रहा था। वैसे में साहित्यकारों, बुद्धिजीवियों से अपेक्षा थी कि समाज के सामने ऐसे नजीर रखे, जिसका व्यवहार-आचरण समाज कर सके। इसी मुहिम के तहत गुप्त जी ने भारत-भारती, साकेत, जशोधरा, जयद्रथवध जैसे महाकाव्य, खण्डकाव्य और चम्पुक काव्यों की रचना की। अनघ इसी श्रृंखला की एक महत्वपूर्ण कड़ी है। इस काव्य नाटक के माध्यम से जीवन में सद्कार्य करने की सीख मिलती है।