कर्पूर मंजरी - सट्टक
Publisher Description
कर्पूरमंजरी सट्टक भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र द्वारा लिखित नाटिका है। भरतमुनि ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक नाट्यशास्त्र में नाटक के स्वरूप और प्रकार पर विस्तार से विचार किया है। दस रूपक में भी नाटिका का जिक्र आता है। दस रूपक के अनुसार नाटिका वह उपरूपक है जिसमें प्राकृत भाषा का प्रयोग होता है। इसके अंकों को जवनिका कहते हैं। संस्कृत आचार्य राजशेखर के नाटक कपूर मंजरी का एक तरह से अनुसरण किया गया है। भारतेंदु बाबू खड़ी बोली हिन्दी के प्रतिष्ठापक पुरुष थे। गद्य साहित्य एवं उसकी विविध विधाओं के आरंभिक अनुशासनकर्ता थे। भारतेंदु के समय पारसी थियेटर का बड़ा बोल-बाला था। जो कि अपनी फूहड़ता और भौड़ेपन के लिये मशहूर था। भारतेंदु के सामने यह बड़ी चुनौती थी कि किस प्रकार इस फुहड़पन से नाटक विधा को बाहर निकाले। अत: भारतेंदु ने संस्कृत नाटकों को आधार बनाकर बहुत सारे नाटकों की रचना की। उस जमाने में मनोरंजन का सबसे प्रभावकारी और सहज साधन नाटक ही था। इसलिये नाटक के क्षेत्र में जितनी संभावनाएँ थी, उतनी ही उसे बेहतर करने की जरूरत भी। कर्पूर मंजरी नाटिका में, नाटिका का आधार एक राज दरबार है, और उस समय के राज्य में जो भोग-विलास के उपक्रम होते थे, उसी को भारतेंदु बाबू ने गद्य और पद्य दोनों माध्यम से प्रस्तुत किया है। नाटकों में गीत या पद्य के लिये पूरा अवकाश रहता है। गीतों की बहुलता की वजह से गीतिनाट्य शैली का विकास हुआ। इस नाटक में भी गीत की बहुलता है। कई पात्र अपनी बात गीतात्मक शैली में ही कहते हैं। पात्रों के अनुसार बोली में अंतर आ जाता है। जैसे-भाट की बोली ब्रज है तो चेरी या द्वारपाल की बोली अपभ्रंस में। इस नाटिका के माध्यम से जहाँ उस समय के समाज को जानने का अवसर मिलता है, वहीँ मंच द्वारा अच्छा मनोरंजन भी होता है।