क्रांतिदूत अन्ना हजारे क्रांतिदूत अन्ना हजारे

क्रांतिदूत अन्ना हजार‪े‬

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Descripción editorial

महाराष्ट्र सरकार तथा उसके अधीन विभागों में चल रहे भ्रष्टाचार के विरुद्ध, जो व्यक्ति एक लम्बे समय से डटा हुआ था, वह अचानक पूरे देश की आंखों का तारा बन गया। रातों रात इस व्यक्ति का महत्त्व इतना बढ़ जाएगा, किसी ने सोचा भी नहीं था। जिस व्यक्ति को महाराष्ट्र से बाहर कोई नहीं जानता था उसकी प्रशंसा विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री करते नहीं थक रहे।



73 वर्षीय अन्ना हजारे ने अपना आंदोलन सरकार के विरुद्ध किया और भारत सरकार ने जन दबाव में आकर उनकी पांचों मांगे मान लीं। हजारे की जीत और अपनी हार होने पर भी सरकार ने कोई कटुता नहीं दिखाई। इसके लिए सरकार भी प्रशंसा की हकदार है। बात बिगड़ न जाए, इसलिए सरकार ने समझदारी से काम लेते हुए मात्र पांच दिनों में ही अन्ना हजारे के आंदोलन को सफल होने का अवसर दे दिया।.... अद्भुत धरना!



जनलोकपाल विधेयक, भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की कोशिश करेगा। इस विधेयक के पास होने से भ्रष्टाचार पहले धीरे- धीरे कम होगा और फिर पूरी तरह से खत्म हो जाएगा। अन्ना का मानना है कि भारत का हर व्यक्ति ईमानदार बने। 4 अप्रैल 2011 को जंतरमंतर पर अन्ना हजारे जिस छोटे से दीपक को जलाने पहुंचे, वही दिया दो तीन दिनों में दिनकर बन गया। उसी देशभक्त के प्रयासों का लेखा-जोखा इस पुस्तक में प्रस्तुत है।

GÉNERO
Biografías y memorias
PUBLICADO
2017
10 de abril
IDIOMA
HI
Hindi
EXTENSIÓN
140
Páginas
EDITORIAL
Diamond Pocket Books
VENDEDOR
diamond pocket books pvt ltd
TAMAÑO
2.2
MB

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