महानायक एकलव्य: पतित पावन गाथा भाग २
-
- USD 2.99
-
- USD 2.99
Descripción editorial
सशस्त्र रक्षकों से घिरे हुए रुद्रपुत्र के शाही महल में एक भयावह सन्नाटा है। कोई कुछ जानता है, कुछ ऐसा जो अभी किसी को नहीं पता। भूतकाल में अगर एकलव्य को गुरुकुल में प्रवेश नहीं मिला होता तो क्या होता? क्या इसका कोई विकल्प होता?
"क्या मैं तैयार हूँ? मैं हारना नहीं चाहता! विजय ही एकमात्र विकल्प है - और यदि आवश्यकता हुई तो मैं विजय छीन लूंगा, चाहे बल से अथवा छल से। या तो मैं जीत जाऊंगा, या मैं कुछ ऐसा कर जाऊंगा जो किसी ने अपने स्वप्नों में भी करने का विचार नहीं किया होगा। मैं इस खेल के नियमों को ही बदल दूंगा। लेकिन क्या इतना ही काफी है? बल से श्रेष्ठ होना ही काफी नहीं, मैं लोगों की सोच पर राज करना चाहता हूँ..."
क्या वह प्रतिशोध लेना चाहता है? प्रतिशोध एक परजीवी है जो तुम पर सवार हो कर बढ़ता रहता है। तुम्हारे शरीर और आत्मा को कुरेदता रहता है, और अंततः यह तुम्हारा अंग बन जाता है!
महानायक एकलव्य की कथा उन सब रहस्यों को उजागर करती है जिन्हें आप चरित्रनायक एकलव्य में पढ़ कर मंत्रमुग्ध हो गए थे।