Pakhandmukt Bharat: पाखंडमुक्त भारत
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Publisher Description
भारतीय समाज में सदियों से व्याप्त गैर-बराबरी और रुढ़िगत पाखंडों ने एक राष्ट्र के रूप में भारत का बहुत अहित किया है। इन्हीं कुरीतियों के चलते सर्वसक्षम होने के बावजूद भारत राष्ट्र डेढ़ हजार वर्षों तक निरंतर मुठ्ठीभर विदेशी आक्रांताओं के हाथों दासता भोगने को अभिशप्त रहा है। अब समय आ गया है कि भारत को समस्त प्रकार के पाखंडों से मुक्त किया जाए। यह घोर आश्चर्य का विषय है कि एक राष्ट्र के रूप में अपने जिन अनेकानेक दुर्गुणों के कारण भारत हजारों वर्षों की गुलामी भोगने के लिए विवश हुआ, वे दुर्गुण आज भी समाज में सर्वत्र व्याप्त हैं। कहीं कोई चेतना दिखाई नहीं देती कि इन दुर्गुणों को दूर कर राष्ट्र को सशक्त और समर्थ बनाया जाए। सवा सौ करोड़ वाले विशाल भारत देश में आज ऐसे लोग कम हैं, जिनके अंदर सदियों से समाज में व्याप्त इन दुर्गुणों को समाप्त कर राष्ट्र को सशक्त बनाने का संकल्प भाव, यथोचित आचरण और दूरदर्शिता है।
पंकज के. सिंह, राष्ट्रीय महत्व के विचारोत्तेजक विषयों पर लिखने वाले देश के अग्रणी लेखकों में हैं। उनकी लेखनी पाठकों और सामान्य नागरिकों को विषय को समझने की एक नई दृष्टि और समझ प्रदान करती है। पंकज के. सिंह के द्वारा पूर्व में लिखित पुस्तकों ‘समर्थ भारत’, ‘ स्वच्छ भारत समृद्घ भारत’ तथा ‘भारतीय विदेश नीति’ को संपूर्ण देश में पाठकों द्वारा बेहद पसंद किया गया है। पंकज के. सिंह राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर बारीक समझ रखते हैं। उनके व्यापक चिंतन और विशद अनुभव के कारण नियमित रूप से राष्ट्रीय समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में प्रकाशित होने वाले उनके लेख बेहद पठनीय एवं तथ्यपूर्ण होते हैं। जो भी विषय एवं क्षेत्र भारत को एक सामर्थ्यवान एवं वैभवशाली विकसित राष्ट्र के रूप में स्थापित करने का मानक बन सकते हैं, उन सभी पर पंकज के. सिंह गहन शोध एवं अध्ययन करते रहे हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में इस महत्वपूर्ण बिंदु पर चर्चा की गई है कि सदियों तक अनेक असमानताओं, अंधविश्वासों और रुढ़िगत अदूरदर्शिता के शिकार रहे भारत को कैसे योग्यता पर आधारित एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से युक्त एक समतावादी और संतुलित समाज के रूप में स्थापित किया जा सकता है।