Urdu Ke Mashhoor Shayar Faiz Aur Unki Chuninda Shayari (उर्दू के मशहूर शायर फैज़ और उनकी चुनिंदा शायरी)
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Descripción editorial
फैज़ अहमद फैज़ का नाम दुनिया के मशहूर शायरों में गिना जाता है। वे अमन और तरक्कीपसंद ख्याल के व्यक्ति थे। बंटवारे के बाद फैज़ ने पाकिस्तान की हुकूमत के खिलाफ आवाज़ उठानी शुरू की। उन्होंने 1951 में लियाकत अली खान की सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला। लियाकत अली खान की सरकार के तख्तापलट की साजिश रचने के जुर्म में वे 1951-1955 तक कैद में रहे। फैज़ को पाकिस्तान की हुकूमत ने जेल में डाला तो उन्होंने वहीं से रूमानी और इंकलाबी दोनों तरह की शायरी को लिखना जारी रखा। इसके बाद उनके जेल से लिखने पर रोक लगा दी गई। जेल में लिखा गया उनका कलाम बाद में बहुत मशहूर हुआ, जो “दस्त ए सबा” तथा “जिंदानामा" नाम से छपा। 1962 में फैज़ ने लाहौर पाकिस्तान में आ काउनसिल में काम किया। 1963 में उनको सोवियत-संघ (रूस) ने 'लेनिन शांति' पुरस्कार प्रदान किया। नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तुजू ही सही नहीं विसाल मयस्सर तो आरजू ही सही॥.