कृष्णा की आत्मकथा की स्थापना
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Publisher Description
"कृष्णा की आत्मा-कथा: द्वारिका की स्थापना" केवल एक ऐतिहासिक या पौराणिक आख्यान नहीं, बल्कि स्वयं श्रीकृष्ण की आत्मा से फूटी हुई वह गाथा है जो उनके भीतर के संघर्ष, दूरदृष्टि और लोक-कल्याण की भावना को उजागर करती है।
मथुरा की राजनीतिक उठापटक और अपने कबीले को बचाने की विवशता से जन्म लेती है द्वारिका – एक स्वप्न, एक संकल्प, और एक नई सभ्यता की नींव। इस आत्मकथा में कृष्ण केवल एक भगवान नहीं, बल्कि एक कुशल रणनीतिकार, दूरदर्शी राजा और जन-रक्षक के रूप में सामने आते हैं।
मुख्य विशेषताएँ:
# आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि: द्वारिका की स्थापना को केवल भौगोलिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक पुनर्जन्म की प्रक्रिया के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
# कृष्ण का मानवीय पक्ष: यह कथा उनके भीतर के द्वंद्व, पीड़ा, और गहन सोच को उजागर करती है – जब वे एक नई सभ्यता का सपना देखते हैं।
# धर्म, राजनीति और दर्शन का संगम: यह पुस्तक उन परिस्थितियों का विश्लेषण करती है जिनमें धर्म और राजनीति एक होकर एक आदर्श राज्य की रचना करते हैं।
# कथा और आत्मचिंतन का विलय: आत्मकथात्मक शैली में लिखी गई यह पुस्तक पाठकों को कृष्ण के मन और आत्मा की गहराइयों तक ले जाती है।