



चाबुक
Publisher Description
चाबुक सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के आलोचनात्मक लेखों का संग्रह है। इस पुस्तक के तहत भौन कवि, बिहारी और रवीन्द्रनाथ, श्री नन्ददुलारे वाजपेयी, काव्य साहित्य, वर्णाश्रम धर्म की वर्तमान स्थिति, चरित्रहीन आदि शीर्षक लेखा संकलित है। आज की आलोचना पद्धति से भिन्न इन आलोचनात्मक लेखों में संस्मरण ज्यादा है। इन्हीं संस्मरणों के बीच शीर्षक विषय पर बात-चीत हो जाती है। निराला की इस शैली के तहत हम उस समय की स्थिति-अवस्था से परिचित होते चलते हैं। साथ ही उस समय के जो महान साहित्यकार थे, उनके जीवन से जुड़ी घटनाओं की भी जानकारी मिलाती है। जहाँ एक तरफ हिन्दी जाति और हिन्दी भाषा के लिये संघर्ष, इन लेखों का स्थाई प्रतिपाद है। वहीँ दूसरी तरफ अनुवाद में अनुवादक की अल्पज्ञता और उल्टे-सीधे अनुवाद की कड़े शब्दों में निंदा है। हिन्दी में ही भाषा की एकरूपता और व्याकरण के नियमों को लेकर कई जगह अपने मत पूरी स्पष्टता से निराला ने रखे हैं। जो लेखक व्याकरण के नियमों में मनमानी करते हैं, उनकी कड़ी फटकार लगाई है। लेखनी की सबसे बड़ी विशेषता, अपनी बातों को कहने का संतुलन है। जो बेबाकी निराला ने अपनी कविताओं में दिखाई है, वैसी ही निर्भीकता से इस किताब में भी उपस्थित रहे हैं। पूरी किताब में अपनी शीर्षक की सार्थकता को सिद्ध करते हुये, (लेखकीय मर्यादा के भीतर) निराला ने प्रत्येक लेख में विषय के अनुसार अपने स्पष्ट मत रखे हैं।