



जन्मेजय का नाग-यज्ञ
Publisher Description
जन्मेजय का नाग यज्ञ जयशंकर प्रसाद का एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक नाटक है। महाभारत में वर्णित खांडव प्रदेश को अर्जुन ने श्रीहीन कर दिया था, जिससे अनेकों जीव-जातियों का विनाश हो गया था। इन्हीं जीव-जातियों में एक नाग जाति थी, जिसने अपने सर्वनाश का बदला कुरु वंसजों से लेने की ठानी थी। कथा क्रम में कृष्ण ने इस नाग वंश के साथ वैवाहिक और मैत्री के सम्बंध स्थापित किये। लेकिन नागों की प्रतिशोध वृति खत्म नहीं हुई। अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को इन्हीं नागों ने धोखे से मारा था। जिसके प्रतिउत्तर में परीक्षित पुत्र जन्मेजय ने इस नाग जाति को हमेशा के लिये खत्म करने का संकल्प किया। उस जमाने में अपने राजकीय वर्चस्व की प्रतिष्ठा के लिये राजा अश्वमेघ यज्ञ करते थे। जन्मेजय ने भी यहीं यज्ञ किया, जिसमें विघ्न डालने पर नागों के प्रमुखों का वध कर दिया गया। लेकिन मानवता की प्रतिष्ठा और निरंकुशता के संतुलन के लिये नाग जाति के साथ फिर से वैवाहिक और मैत्रीपूर्ण सम्बंध स्थापित किये गये। इसी घटना को आधार बना कर प्रसाद जी ने इस नाटक की रचना की है। प्रसाद जी की इतिहास-अन्वेषण दृष्टि यहाँ भी पूरे घटना-क्रम को साहित्यिक परिवेश में गढ़ती है। और इतिहास को एक नये दृष्टि से देखने के लिये प्रोत्साहित करती है।