पिता के पत्र पुत्री के नाम पिता के पत्र पुत्री के नाम

पिता के पत्र पुत्री के ना‪म‬

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Publisher Description

'इतिहास के अध्ययन एवं साम्राज्यवादी लूटतंत्र की पीड़ा ने उन्हें भारत की आजादी के आंदोलन में कर्मठ देशभक्त के रूप में सामने किया।' आजादी के आंदोलन के दिनों में जेल तथा उससे बाहर लिखे उनके पत्र उनकी गहन विवेक-वयस्कता, स्वाधीन-चिंतन और चिंतन की स्वाधीनता, दृष्टि की वैज्ञानिकता एवं अंतर्राष्ट्रीय मामलों के प्रति जागरूकता का प्रमाण प्रस्तुत करती हैं। नेहरू जी ने अपनी पुत्री श्रीमती इंदिरा नेहरू को जो पत्र लिखे हैं, उनमें एक पिता का उच्छलित हृदय है और बेटी को अच्छी से अच्छी राह पर चलाने की शिक्षा का एक गौरवमय इतिहास है।

स्वंत्रत भारत के प्रथम अधिनायक पं नेहरू अपनी राजनीतिक कुटनीति के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी कूटनीति ने परतंत्र भारत की स्वाधीनता में जितनी सहायता पहुँचाई उससे कहीं ज्यादा आजाद भारत को ठोस बनाने में। उनके कार्यकाल में जब विश्व के कई महाशक्तियों ने भविष्यवाणी कर दी थी कि भारत टिक नहीं पायेगा तब ऐसी परिस्थिति में भारत का एक ऐसा नेता जिसे दुनिया की कई महाशक्तियाँ अपने खेमे में लेना चाहती थी लेकिन उन्होंने असहाय भारत का नेतृत्व कर उसे मजबूत बनाने का निर्णय लिया और उसे ऐसी ऊँचाइयों पर पहुँचाया, जैसे आग का दरिया पार करना। और यह मुमकिन हो सका क्योंकि उन्हें देश-दुनिया और इतिहास का अध्ययन था व उनकी दृष्टि दूरगामी थी।

परंतु संपूर्ण जीवन में राजनीतिक सक्रियता के बाद भी उनके भीतर प्रेम और सद्भाव का कोष कभी रिक्त नहीं हो पाया। इस प्रेम को उन्होंने समाज व परिवार पर समान रूप से अर्पित किया। वह लगातार अपनी बेटी इंदिरा नेहरू से बातचीत करते थे और उन्हें राजनीति, समाज व देश-दुनिया के प्रति जागरूक करने हेतु पत्रों को माध्यम बनाते थे। फिर चाहे वह जेल में रहकर हो या उसके बाहर।

इसके अतिरिक्त जेल यात्रा के दौरान उन्होंने पूर्व और पश्चिम के विभिन्न देशों के दर्शन, सिद्धान्तों को पढ़ते-समझते हुए वर्ष १९३३ से लेकर लगभग १९४० तक अपने विचारों को इन पत्रों में अभिव्यक्त किया है जिनका सार रूप यहाँ प्रस्तुत है। आशा है यह जानकारी पाठकों का ज्ञानवर्धन करेगी

GENRE
Biographies & Memoirs
RELEASED
2025
January 13
LANGUAGE
HI
Hindi
LENGTH
120
Pages
PUBLISHER
Diamond Pocket Books
SELLER
diamond pocket books pvt ltd
SIZE
377
KB
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