प्रेममूर्ति भरत प्रेममूर्ति भरत

प्रेममूर्ति भरत‪ ‬

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Publisher Description

भरत के व्यक्तित्व का दर्शन हमें ‘राम वन गमन’ के पश्चात् ही होता है। उसके पहले उनका चरित्र-मूक समर्पण का अद्भुत दृष्टान्त है जिसे देखकर कुछ भी निर्णय कर पाना साधारण दर्शक के लिये कठिन ही था। इसी सत्य को दृष्टिगत रख कर गोस्वामी जी ने ‘राम वन गमन’ के मुख्य कारण के रूप में भरत प्रेम-प्राकट्य को स्वीकार किया। जैसे देवताओं ने समुद्र-मन्थन के द्वारा अमृत प्रकट किया था ठीक उसी प्रकार राम ने भी भरत-समुद्र का मंथन करने के लिए चौदह वर्षो के विरह का मन्दराचल प्रयुक्त किया। और उससे प्रकट हुआ - राम प्रेम का दिव्य अमृत। प्रेम अमिय मन्दर विरह भरत पयोधि गँभीर। मथि प्रगटे सुर साधु हित कृपासिन्धु रघुबीर।। प्रस्तुत पुस्तक में इसी ‘अमृत-मन्थन’ की गाथा है। शैली-भावना प्रबल है और एक विशिष्ट भावस्थिति में लिखी भी गई है।

GENRE
Religion & Spirituality
RELEASED
2014
January 31
LANGUAGE
HI
Hindi
LENGTH
156
Pages
PUBLISHER
Ramayanam Trust
SELLER
Bhartiya Sahitya Inc.
SIZE
1.4
MB
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