मेरे गुरुदेव मेरे गुरुदेव

मेरे गुरुदे‪व‬

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मेरे गुरुदेव स्वामी विवेकानंद द्वारा शिकागो में दिया गया भाषण है, जो आगे चल कर पुस्तकाकार किया गया था। इस भाषण में स्वामी जी ने अपने गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस के जीवन, उनकी त्याग और तपस्याओं तथा उनकी शिक्षा का विस्तार पूर्वक जिक्र किया है। रामकृष्ण परमहंस वस्तुतः एक साधक थे, ज्ञान पिपाशु थे, सत्य अन्वेषक थे, विविध धर्मों के समभाव के पक्षधर थे। धर्मों के वैविध्य और शिक्षा-दर्शन के लिये वे सभी धर्मों के पुरोहितों के संसर्ग में रहे और सभी से ज्ञान-लाभ और ज्ञान-चर्चा किया। अंत में वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि सभी धर्मों का मूल एक ही है और इसी को अपनी शिक्षा का आधार बनाया। कहते हैं विवेकानन्द, विवेकानन्द इसलिये हुये क्योंकि उन्हें रामकृष्ण जैसा गुरु मिला। विश्व मंच पर गुरु के गौरव की प्रतिष्ठा, शिष्य की गुरु भक्ति तो है ही, साथ-ही-साथ भारतीय सभ्यता-संस्कृति की उस श्रेष्ठ मर्यादा की प्रतिष्ठा भी है, जिसके लिये सृष्टि के प्रारंभ से भारत की पहचान रही है। सभ्यताओं के द्वन्द्व में सिन्धु सभ्यता की प्रतिष्ठा रही है। जैसे प्राचीन काल में चन्द्रगुप्त बनाम सिकंदर का युद्ध, सिर्फ चन्द्रगुप्त-सिकंदर का युद्ध नहीं था। वह चाणक्य और अरस्तु के ज्ञान-गौरव का युद्ध भी था। वैसे ही बीसवीं शताब्दी में विश्व मंच से भारतीय धर्म-ज्ञान और गुरु-ज्ञान की प्रतिष्ठा, उस यूरोपीय औपनिवेशिक भ्रम-जाल को चेताना भी था, उसके मिथ्याभिमान से। मेरे गुरुदेव शीर्षक भाषण के माध्यम से विवेकानन्द ने नि:संदेह विश्व मंच पर गुरु-गौरव की प्रतिष्ठा की है।

GENRE
Biographies & Memoirs
RELEASED
2016
December 13
LANGUAGE
HI
Hindi
LENGTH
62
Pages
PUBLISHER
Public Domain
SELLER
Public Domain
SIZE
890.8
KB
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