वैकुण्ठ का विल
Publisher Description
वैकुण्ठ का विल शरदचन्द्र द्वारा लिखित एक भावप्रवण गृहस्थ परिवार की कहानी है। जिसमें गृहस्थ जीवन के उतार-चढ़ाव के साथ-साथ लोक-समाज की दखल, चतुराई और खींच-तान को दिखाया गया है। शरद बाबू मूलत बंगला कथाकर थे। अत: अपनी कहानियों के लिये उन्होंने कथा सामग्री बंगला समाज से ज्यादा उठाया है। लेकिन उनकी अनुभूति इतनी गहरी थी कि कथा एक समाज की सीमा को तोड़ते हुये पूरे जीवन-समाज का बन जाता है। बंगला कथाकारों के यहाँ वसीयत का जिक्र बहुत बार आता है। इस कहानी के केंद्र में विल (वसीयत) ही है। लेकिन लेखक ने बड़ी सावधानी से उसकी दिशा बदल दी है। वसीयत का झगड़ा सम्पत्ति से इंसान के भावनात्मक रिश्तों तक चला जाता है। यहाँ सम्पत्ति तुच्छ, छोटी हो जाती है और मानवीय रिश्तें अपना आकार लेते हैं। जब पंच आते हैं तो गोकुल अधीर हो कर कहता है “ बाबुजी ने अपने वसीयत में मुझे माँ को सौपा था, नहीं चाहिये मुझे कोई सम्पत्ति जो मुझे मेरी माँ से अलग करती हो” किसी भी समाज का निर्माण इंसान-इंसान के प्रेम के मिलने से तैयार होता है, पैसों से नहीं। पैसा एक जरूरी साधन है जीवन को चलाये जाने के लिये, लेकिन इसकी अनिवार्यता ऐसी भी नहीं कि इंसान अपने होने का मतलब ही खो बैठे। यही सन्देश इस पुस्तक (वैकुण्ठ का विल) का है।