कठघरे (Hindi Stories
Kathghare (Hindi Stories)
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- CHF 6.00
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Beschreibung des Verlags
तीन सौ बहत्तर बार सुनी हुई किसी लम्बी और बेहद ग़ैर-दिलचस्प कहानी को एक बार और, फिर एक बार और हलक़ के नीचे उतारने की तरह हम सभी वकील और कुछ अगले वक़्तों के मुख़्तार ९-४० से ले कर १०-२० के अन्दर-अन्दर इन तख़्तों पर आकर बैठ जाते हैं। कोई कीटगंज से आता है, कोई मोहतशिमगंज से, कोई नए कटरे से, कोई पुराने कटरे से, कोई चक से, कोई चौक से, कोई ख़ुल्दाबाद से और कोई दरियाबाद से...शहर के हर कोने से इंसाफ़ के मुजाहिद यहाँ आकर जुटते हैं, काले रंग की घिसी हुई अचकन या कोट पहने हुए, जो कि उनकी वर्दी है। इन मुजाहिदों में सभी ज़ात, सभी कौम, सभी रंग सभी मज़हब के लोग हैं, मगर सब इंसाफ़ के यकसाँ मुजाहिद हैं, और कोई किसी से घट कर नहीं है, सब में वही जोश-ओ-ख़रोश है...यहाँ तक कि अगर एक मुजाहिद पाँच रुपये फ़ी पेशी पर इंसाफ़ के लिए जिहाद छेड़ने को तैयार है, तो दूसरा सिर्फ़ दो रुपये पर, और तीसरा एक ही रुपये पर, और चौथा, जो सबसे दिलेर है, आठ ही आने पर। सबके सीनों में इंसाफ़ की वह आग धधकती रहती है कि रुपये-पैसे के तमाम ओछे ख़यालात जल कर ख़ाक हो जाते हैं। जो बेकस है, मज़लूम है उसकी, हिमायत में जान तक भी क़ुर्बान की जा सकती है, यह नाचीज़ पैसा क्या है!