![कस्बे का एक दिन (Hindi Stories)](/assets/artwork/1x1-42817eea7ade52607a760cbee00d1495.gif)
![कस्बे का एक दिन (Hindi Stories)](/assets/artwork/1x1-42817eea7ade52607a760cbee00d1495.gif)
![](/assets/artwork/1x1-42817eea7ade52607a760cbee00d1495.gif)
![](/assets/artwork/1x1-42817eea7ade52607a760cbee00d1495.gif)
कस्बे का एक दिन (Hindi Stories)
Qasbe Ka Ek Din (Hindi Stories)
-
- CHF 3.50
-
- CHF 3.50
Beschreibung des Verlags
‘कस्बे का एक दिन’ लिखते समय मुझे गोर्की का ‘कामरेड’ स्केच याद आया था और मैंने चाहा था कि अपने स्केच में मैं समाज के उन तत्वों की ओर भी संकेत कर सकूँ जो कस्बे की गड़मड़ ज़िन्दगी को सुचारू और सुव्यवस्थित रूप देने के लिए प्रयत्नशील हैं और एक दिन जिनकी जीत होगी। लेकिन तब भी मैं वैसा नहीं कर सका। यह कुछ अंशों में मेरी अपनी अक्षमता भी है, इस अर्थ में कि मेरे पास वह तेज निगाहें नहीं हैं जो समाज के उन तत्वों को जो अभी केवल बीज़ रूप में हैं, देख सकें। पर बात इतनी ही नहीं है। लेखक जिस सामाजिक परिवेश, जिन पात्रों और जिस कथावस्तु को लेकर चलता है, वे भी एक हद तक लेखक को एक खास निष्पत्ति की ओर जाने पर विवश करते हैं। ‘क़स्बे का एक दिन’ में नवनिर्माण के तत्वों की सूचना न होने के पीछे मेरी अक्षमता के साथ-साथ उस सामग्री की आन्तरिक अक्षमता भी है जिसमें स्केच के ईंट-गारे का काम किया है। इस प्रश्न पर विचार करते समय इन दोनों ही बातों का ध्यान रखना पड़ेगा और पूरी कहानी या स्केच पर इसी सम्यक् दृष्टि से विचार करना पड़ेगा।