मंझली दीदी
Publisher Description
मझली दीदी शरदचंद्र चट्टोपाध्याय का एक लघु उपन्यास है। इसके साथ ही इस किताब में एक लम्बी कहानी है जिसे सुहाग की चूड़ी नाम दे सकते हैं। मझली दीदी में शरद बाबू ने इंसानी संबंधों का ऐसा स्वरूप प्रस्तुत किया है जो नाम की सीमा से ऊपर है। मानव-संबंधों के जितने भी नाम इंसान ने तय किये हैं उन सब के भावनात्मक या सामाजिक महत्व है। जिस समाज का प्रसार या विस्तार जितना परस्पर ढंग से होता है उस समाज में संबंधों के संबोधन उतने ही ज्यादा और उतने ही गहरे होते हैं और जिन समाज में विस्तार कम होता है वहाँ संबोधन सीमित होते हैं। जैसे यूरोप में आदमी या तो ब्रदर है या अंकल। लेकिन भारत में ऐसा नहीं है चूँकि भारत में संबंधों का प्रसार यूरोप के अनुपात में कहीं ज्यादा और कहीं गहरा है। इन्हीं संबंधों के विनिमय-वितरण में कई बार अपने पराये और पराये अपने हो जाते हैं। संबंधों के इस लेन-देन, आदान-प्रदान में इंसान की कौन सी भावनात्मक दृष्टि काम कर रहीं होती है, कौन सा मनोविज्ञान काम करता है ठीक ढंग से कहना मुश्किल है। लेकिन एक बात जरूर है कि मनुष्य की आंतरिक एषणा इतनी कोमल होती है कि पहुँचाने वाला सम्बंधातित भी अपना हो जाता है और अपने उस कोमल पाश्व स्थान पर न पहुँच कर गैर। शायद इसीलिये समाज में इंसानियत की तरलता सभी जगह पाई जाती है, किसी स्थान विशेष पर नहीं। मझली दीदी के माध्यम से शरद बाबू ने इसी इंसानियत की प्रतिष्ठा की है।