सुनो, मौन बोलता है
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Descripción editorial
हम एक ऐसी दुनिया में जी रहे हैं जहाँ शोर हर जगह है।
मोबाइल की घंटी, सोशल मीडिया की लगातार सूचनाएँ, मीटिंग्स की भीड़, और बातचीत की हलचल ने हमारे भीतर की खामोशी को लगभग भुला दिया है। हम अक्सर सोचते हैं कि जीवन का सार शब्दों में है, पर सच्चाई यह है कि सबसे गहरी बातें अक्सर मौन में कही जाती हैं।
मौन केवल बोलने से रुक जाना नहीं है। यह एक अवस्था है—जहाँ मन शांत होता है, विचारों का शोर थमता है और आत्मा की आवाज़ स्पष्ट सुनाई देने लगती है। यही वह क्षण है जब इंसान अपने असली स्वरूप से परिचित होता है। मौन हमें यह सिखाता है कि कैसे पहले सुनना और फिर बोलना ही बुद्धिमत्ता है।
प्रकृति हमें हर रोज़ मौन का अनुभव कराती है—पेड़ों की सरसराहट, नदी की धारा, पक्षियों की उड़ान, और रात का सन्नाटा। ये सब हमें याद दिलाते हैं कि मौन में भी संगीत है, मौन में भी संदेश है। वहीं, शहर की हलचल में भी अगर हम चाहें, तो एक पल ठहरकर भीतर की खामोशी को महसूस कर सकते हैं।
संबंधों में मौन की भूमिका और भी अद्भुत है। कई बार शब्द अनावश्यक हो जाते हैं और केवल मौन ही दिल से दिल की दूरी मिटा देता है। प्रेम, करुणा और संवेदनशीलता अक्सर शब्दों से नहीं, बल्कि मौन की गहराई से व्यक्त होते हैं।
आध्यात्मिक यात्रा पर मौन एक साथी की तरह है। ध्यान, साधना और आत्म-ज्ञान की राह में मौन सबसे बड़ा साधन है। यह हमें भीतर झाँकने की शक्ति देता है, भ्रम और बेचैनी को दूर करता है, और सत्य के करीब ले जाता है।
इस पुस्तक "सुनो, मौन बोलता है" में मौन के इन सभी आयामों को सरल और सहज भाषा में प्रस्तुत किया गया है। इसमें आप पाएँगे—मौन की परिभाषा, उसकी आवश्यकता, सुनने की कला, प्रकृति और शहर का मौन, संबंधों में मौन की भूमिका, आध्यात्मिक मौन, साधना और मौन को जीवन का हिस्सा बनाने की राह।
यह किताब केवल पढ़ने के लिए नहीं, बल्कि जीने के लिए है। यह आपको शब्दों की भीड़ से बाहर निकालकर आत्मा की गहराई में उतरने का निमंत्रण देती है।
तो आइए, इस यात्रा की शुरुआत करें। सुनो... क्योंकि मौन बोलता है।