मेरी आत्मकथा
Publisher Description
मेरी आत्मकथा रवीन्द्रनाथ टैगोर के अपने जीवन की आत्मकथा है। लेकिन किसी दूसरे जीवनी लेखक या आत्मकथा लेखक से भिन्न टैगोर ने एक अलग कलेवर के साथ इस पुस्तक की रचना की है। आत्मकथा में लेखक का निजी जीवन ज्यादा विस्तार से वर्णित होता है। आस-पास और देश-काल की घटनाएँ छाया की तरह चलती है। लेकिन टैगोर ने देश-काल, समाज-संस्कृति को केंद्र में रखा है और खुद छाया की तरह चले हैं। इस पुस्तक में बाल मनोविज्ञान को सुन्दर ढंग से खींचा गया है। एक बालक में बोध-अबोध, जिज्ञासा-अज्ञानता का कैसा सुन्दर संयोग होता है। इसे टैगोर खुद के जीवन से देखते हुये पूरे विश्व के बाल मनोविज्ञान तक पहुँचते हैं। साथ–साथ प्रकृति के माध्यम से साहित्य की समझ और संस्कार कैसे विकसित होता है यह भी बताते चलते हैं। टैगोर के अनुसार प्रकृति जीवन को समझने का दर्पण है। बाल्यावस्था से ही विद्यालयी शिक्षा से भागने वाले टैगोर ने सीखने के लिये पेड़, पौधों, वनस्पतियों को चुना। सम्पूर्ण प्रकृति उनकी पाठशाला रही, यही उन्होंने प्रारभिक वर्तनी से लेकर विश्व मानव और विश्व दर्शन तक का ज्ञान प्राप्त किया। और मानव जीवन को महामानव समुन्द्र कहा। मेरी आत्मकथा का प्रतिपाद रवीन्द्रनाथ का जीवन जरूर है परन्तु इस पुस्तक की एक-एक पंक्ति संसार को समझाने का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।